"Only a good-for-nothing is not interested in his past."
Sigmund Freud

Thursday, January 14, 2010

गोहद की रानी का जौहर - 3

भा वीरों की धरती है, और यह ज़रूरी नहीं कि सारे वीर सिर्फ चित्तौड़ में ही हुए हैं. यहाँ ग्वालियर के दुर्ग में हज़ारों हज़ार शत्रुओं से घिरे, 600 गोहद के जाट अपनी रानी की रक्षा और राणा को दिए वफादारी के वचन को निभाते-निभाते इतिहास लिखने वाले थे. हालाँकि इन छोटी रियासतों की सच्ची कहानियों को हमारे सरकारी पिट्ठू इतिहासकारों ने कभी किताबों में जगह नहीं दी. 

कविवर हरिहर निवास दिवेदी ने अपने 'गोपाचल आख्यान'  में इस का बड़ा ही विस्तारपूर्वक वर्णन किया है.

उसका एक दोहा 

बहुत वीर कौ घात करि  l  मथ्यौ युद्ध गंभीर  ll 
 तब रणभूमि परौ सुभट  l   राजधरण रणधीर  ll
 मची रुधिर की कीच तहं  l  छोट महल के बीच  ll 
परे समर बहुबीर तहं  l  सौ और पांच गंभीर  ll  

वे 600 लड़ते रहे, मराठे और उनके साथी हज़ारों में आते रहे, वे कटते रहे काटते रहे, चिरते रहे चीरते रहे, आखिर वीरता का भी तो एक मुकाम होता है. जब सारे प्रयास निरर्थक साबित होने लगे तथा उनका सेनापति राजवर भी वीरगति को प्राप्त हुआ, तब गोहद की रानी ने अपने सहायकों के साथ महल के भीतरी भाग में जाकर दरवाज़े बंद कर लिए और इमारत में आग लगा ली, तथा अपनी लाज और अपने स्वाभिमान की खातिर प्राण दे दिए. ऐसी थी राणा छत्रसिंह की पत्नी और गोहद की रानी.

गोपाचल आख्यान से  एक चौपाई:

तब रानी मन किन्ह विचारा  l  सुरपुर लेन समै अनुसारा ll
ताको खडग मृत्यु अरु आगी  l  जौहर महल भयो तन त्यागी  ll
तब पटैल की वीर रिसाई  l  ऊपर चढे महल पै धाई  ll 
हल्ला करौ महल में भारी  l  राज बरन तब मृत्यु सम्हारी  ll 
मरे सुभट निज कर करिनी  l  अति संग्राम-रंग महि बरनी  ll 
 
  कहते हैं वीरों के लिए युद्ध-भूमि पर लड़ते-लड़ते प्राण निछावर करने से सीधे स्वर्ग मिलता है, गोहद के इन वीरों को भी ज़रूर स्वर्ग मिला होगा, लेकिन इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली. न इस जौहर का कहीं जिक्र आता है, सिवाय हरिहर निवास द्विवेदी के 'गोपाचल आख्यान' के, तथा हमें गोहद के जाटों का  इतिहास लिखने वाले 'डा.अजय कुमार अग्निहोत्री' का शुक्रिया कहना चाहिए जिन्होंने इस पर गहन शोध किया और अपनी  पी.एच.डी. में इस विषय पर काम किया. 

नोट: मुझे इस लेख को लिखने की प्रेरणा डा. अजय कुमार अग्निहोत्री की इसी पुस्तक को बार-बार पढ़ने के बाद मिली. मैंने इसे तीन भागों में पढने वाले की आसानी के लिए विभाजित किया है. आशा है पाठकों को ये पसंद आयेगा. 

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